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Bad Sad Coldness

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कुछ कहानियाँ हम देखते हैं। कुछ को महसूस करते हैं और कुछ हम जीते हैं। ये ऐसा ही है, जैसा हम अपनी सोच से समझना चाहतें हैं। कभी मैं जो कहानी सोचता हूँ। लिखते समय खुश भी होता हूँ और कभी दिल को छू जाने पर रो भी लेता हूँ। शायद मैं उसे जीता हूँ। इसे मैं अपनी नज़रों से भले न देखूं , न ही किसी और से सुनूं। ये बस मेरी feeling है। जो कहीं न कहीं किसी व्यक्ति के जीवन से जुड़ जाती है। बात करतें है उस लड़की की जो नूज़ीलैण्ड के क्राइस्टचर्च शहर में रहती थी। आज हम एक सर्च गूगल पर करते हैं तो पूरा देश हमारे सामने आ जाता है। हम सारा देश देखना और घूमना चाहतें हैं। खुल कर घूमना चाहतें हैं पर अगर आप के पास कोई घर न हो पैसे न हों सर्दियों के मौसम में ओढ़ने के लिए बस एक चादर हो। आप क्या महसूस करेंगे। मैं आप को डरा नहीं रहा बस इतना बता रहा हूँ। ये उस लड़की की परिस्थिति है जो सिर्फ 10 साल की है। उस लड़की को दुनियाँ नहीं घूमना बस उसे एक छोटी सी जगह की तलाश है जहाँ वो जी सके। सोफी, यही उसका नाम था। सोफी चादर ओढ़ कर सड़क पर चल रही थी।  क्या हुआ था, उसकी जिंदगी में। उसे किसी ने अनाथ आश्रम में छोड़ दिया था

Khub Uri aate ki chiriya.

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हमारी जिन्दगी में कुछ कहे जाने वाले पल तो कुछ समेट कर दिल में सजाने वाले पल होते है। ये दुःख भी देते हैं और खुशी भी। मेरी कहानी आज मुझ पर ही है। 2004 में जब मैं 10 साल का नादान बच्चा था। जिसे कुछ समझ नहीं आता था। हाँ, शक्तिमान और कार्टून्स के लिए दिमाग तेज था। एक रोज मेरी अम्मी सुबह के नाश्ते के लिए आटा सान रहीं थीं। मैंने आटे का छोटा टुकड़ा अम्मी से माँगा उन्होंने पूछा इसका क्या करोगे। मैंने कहा चिड़िया बनाऊंगा आटे की और रोटी की जगह ये खाऊंगा। अम्मी ने आटा दे दिया। मैंने आटे की गोल लोई बनायी। फिर आटे से मैंने चोंच निकाली और फिर पूँछ। चिड़िया बनाना था बन गया कुत्ता। मैं उसे लेकर दूसरे फ्लोर पर चला गया। जहाँ मेरी बड़ी अम्मी रहती है उनको हम अम्मा कहते है। उन्ही की सीड़ी पर मैं बैठ गया और लोई से बने कुत्ते को दिवार पर चिपकाने लगा। आटा सूख जाने की वजह से वो चपक नहीं रहा था। मैंने आटे को दिवार पर चिपकाया और 5-6 मुक्का मार कर मैंने उसे परमानेंट दिवार पर टैग कर दिया। जिससे आटा तो चपक गया पर कुत्ते की आकृति बदल गयी। आटे से बने कुत्ते का पेट और मुँह मोटा हो गया। जिससे अब वो प

Claver vs Sensible

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दो भेड़े थी। जो बहुत अच्छी दोस्त थीं। एक भेड़ बहुत चलाक थी। तो दूसरी सिर्फ समझदार। वो जंगल के उसी रास्ते पर अपना भोजन तलाशती जहाँ खतरा नहीं होता था। वो दोनों कभी जंगल के अंदर नहीं गयी थीं। एक दिन उनका मन जंगल के अन्दर जाने का हुआ, क्योकि अच्छी घाँस  न मिलने की वजह से उनका पेट भरा नहीं था। वो दोनों जंगल में जाने की सोचने लगीं। समझदार भेड़ को जंगल में जाना अजीब लग रहा था। पर चलाक भेड़ को भूख ज्यादा लगने से वो इस बात पर अड़ गयी। फिर क्या था।  भूख इंसान को कहीं पर भी ले जाती है। दोनों जंगल की ओर चल दियें। उन्हें जानवरों का डर भी लग रहा था। पर रास्ते में थोड़ी थोड़ी घाँस मिल जाने से वो दोनों खाते खाते आगे बढ़ जाती थीं। जानवरों से जहरीले साँपो से बचते बचाते वो जंगल के बीच पहुंच गए। उन्होंने एक गुफा देखी। चलाक भेड़ को गुफा के अंदर जाने का विचार आया। पर समझदार भेड़ ने कहा की ये शेर की गुफा है। शेर गुफा में हो सकता है। चलाक भेड़ ने कहा की ये पंजो के निशान देखो। ये निशान गुफा से बाहर जाता हुआ दिख रहा है। शेर अपना भोजन ढूंढने गया होगा। अभी उसे आने में एक पहर निकल जायेगा। ये बात कह कर
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आज मैं उन चीजों पर लिखने वाला हूँ। जो हमारे मन में होता है और  कभी कभी लोगो में भी दिखाई देता है। मुझे कभी कदार ऐसे व्यक्ति मिल ही जाते हैं। जिनके विचार ऐसे होते हैं की वो कहते हैं -       "उस आदमी में ये गुण बचपन से ही था "  अरे ये तो उसके खून में है।  डॉक्टर का लड़का है, डॉक्टर ही बनेगा। कम्पाउंडर थोड़े ही।  मेरे विचार भी कई साल तक ऐसे ही थें। फिर मैंने अपने विचारों को परखा की  क्या ऐसा वाकयी है? जवाब मिला की, ऐसा बिलकुल नहीं है।  बस उस व्यक्ति की सविधाएँ बढ़ जातीं है। अब उसके सम्भावनाओ पर निर्भर करता है की वो अपनी सुविधाओं को किस तरह उपयोग में लाता है।  ये बात मैं साफ़ कर देना चाहता हूँ की किसी इंसान को दी गयी सुविधाएँ, सही-गलत नहीं होती। उसे व्यक्ति किस काम में और किस तरह उपयोग में लाता है। ये चीज सही और गलत का फैसला करती हैं और उस व्यक्ति को क्या बना रही होती हैं।  एक छोटा लड़का जिसे ये पता नहीं की वो आगे क्या बनेगा उसके टीचर और परिवार वाले उसकी रूचि देख कर समझते हैं और उसके भविष्य का आंकलन करते हैं।  मान लेते हैं की इस वक्त उसे उसके परि

Our life thirst and water.

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एक साधारण आदमी था। उसकी ज़िन्दगी का एक छोटा सा पल बताता हूँ। एक दिन उसे प्यास लगी। आप कहेंगे की इसमें कौन सी बड़ी बात है।  सबको प्यास लगती है और लोग एक गिलास पानी पी लेते हैं। वो भी फ़िल्टर का शुद्ध और ठण्डा।  लेकिन ऐसा नहीं था. सन 1900 के समय में अगर वो आदमी कड़ी धूप में खेत पर काम कर रहा हो।  मई के मौसम में खेत की खर-पतवार भी सूख कर काँटेंदार हो जाती है। सिर्फ इस लिए की वो अधिक दिन जीवित रह सके और उस वक्त मनुष्य का हाल क्या होता था। ये कहानी आप लोगों को बताएगी। खेत में काम करने की वजह से उसके हाथों और पैरों  में मिट्टी लग गयी थी। वो थक भी गया था। खेत से कुछ ही दुरी पर कुंआ  था। वो उसके पास जाता है। कुंए के पास एक बाल्टी रखी हुई है। जो एक रस्सी से बंधी है। रस्सी का आखिरी छोर जो कुंए के पानी में नहीं डूब पाता वो छोर धूप पड़ने की वजह से सख्त और खुरदुरा हो गया है। उस आदमी ने बाल्टी को कुंए में लटकाया और धीरे-धीरे रस्सी को कुंए में ढिलने लगा। उसकी प्यास उस वक्त इतनी तेज हो चुकी थी की वो चिलचिलाती धूप के कारण बे-सुध होने लगा।  वो घुटनो के बल जमीन पर आ गिरा। उसने जो