Two Brothers Story
लोगों ने लड़कों की शिकायत उनकी माँ से की। माँ ने हर बार की तरह उन लोगों से माफ़ी मांगी और लड़कों से गलती अब नहीं होगी ऐसा वादा किया। जो की हर बार की तरह टूट जाता था। बूढ़ी माँ इस बात से बहुत परेशान थी।
उसने अपने बेटों से कहा की मैं तुम्हारी हरकतों से तंग आ गयी हूँ। मेरी परवरिश ने ही तुम दोनों को बिगाड़ रखा है।
गुरु ने देखा की एक पेड़ के निचे बूढ़ी औरत बैठी है और उनका ज्ञान सुन रही है। गुरु ने एक शिष्य से कह कर
उसको अपने पास बुलाया। गुरु को बूढ़ी औरत के चेहरे पर उसकी चिंता की लकीर दिख रही थी। उन्होंने पूछा की तुम्हारे दुःख का कारण क्या है।
बूढ़ी औरत ने अपनी सारी व्यथा सुनाई और गुरु से अपने बेटों को शिष्य बनाने के लिए आग्रह किया, गुरु ने कहा की तुम अपने बेटों के बगैर गुजरा कर सकती हो। वो दोनों ही तुम्हारा आखिरी सहारा हैं। बुढ़िया ने कहा आप उन दोनों का जीवन सुधार दे बस मेरी यही इच्छा है। गुरु ने कहा की सही समय आने पर वो दोनों बेहतर इन्सान बन जायेंगे ।
कुछ दिनों बाद गुरु अपने शिष्यों के साथ मठ के लिए रवाना हुए। उन शिष्यों में बुढ़िया के बेटे भी थें। मठ पर उन दोनों ने कई महीने बीता दिये पर उन दोनों की खुराफात वैसी की वैसी ही रही।
लेकिन गुरु के तेज और प्रभावशाली वाणी के कारण वो दोनों उनके सामने अनुशासन में रहने लगें। फिर भी गुरु की अनुपस्थिति में वो दोनों लड़के अपनी तीव्र बुद्धि के कारण शिष्यों को परेशान करने लगें। गुरु को पता चलने पर उन दोनों पर सख्ती और बड़ा दी गयी। जिससे न वो शिष्यों से बात कर पाते और न ही खुराफात। दोनों भाई बोर होने लगें।
उन्होंने वहां से भागने की योजना बनाई की वो गुरु से कई सारे सवाल पूछेंगे जिससे गुरु तंग आकर उन्हें निकाल देंगे।
अगले दिन गुरु शिष्यों को उपदेश दे रहे थें . ये समय उन दोनों के लिए बहुत अनुकूल था। उपदेश समाप्त होने के बाद, गुरु ने कहा की यदि किसी शिष्य के मन में कोई सवाल है तो वो निःसंकोच पूछ सकता है।
वो दोनों गुरु के सामने गए और पहले लड़के ने पूछा की -
उसको अपने पास बुलाया। गुरु को बूढ़ी औरत के चेहरे पर उसकी चिंता की लकीर दिख रही थी। उन्होंने पूछा की तुम्हारे दुःख का कारण क्या है।
बूढ़ी औरत ने अपनी सारी व्यथा सुनाई और गुरु से अपने बेटों को शिष्य बनाने के लिए आग्रह किया, गुरु ने कहा की तुम अपने बेटों के बगैर गुजरा कर सकती हो। वो दोनों ही तुम्हारा आखिरी सहारा हैं। बुढ़िया ने कहा आप उन दोनों का जीवन सुधार दे बस मेरी यही इच्छा है। गुरु ने कहा की सही समय आने पर वो दोनों बेहतर इन्सान बन जायेंगे ।
कुछ दिनों बाद गुरु अपने शिष्यों के साथ मठ के लिए रवाना हुए। उन शिष्यों में बुढ़िया के बेटे भी थें। मठ पर उन दोनों ने कई महीने बीता दिये पर उन दोनों की खुराफात वैसी की वैसी ही रही।
लेकिन गुरु के तेज और प्रभावशाली वाणी के कारण वो दोनों उनके सामने अनुशासन में रहने लगें। फिर भी गुरु की अनुपस्थिति में वो दोनों लड़के अपनी तीव्र बुद्धि के कारण शिष्यों को परेशान करने लगें। गुरु को पता चलने पर उन दोनों पर सख्ती और बड़ा दी गयी। जिससे न वो शिष्यों से बात कर पाते और न ही खुराफात। दोनों भाई बोर होने लगें।
उन्होंने वहां से भागने की योजना बनाई की वो गुरु से कई सारे सवाल पूछेंगे जिससे गुरु तंग आकर उन्हें निकाल देंगे।
अगले दिन गुरु शिष्यों को उपदेश दे रहे थें . ये समय उन दोनों के लिए बहुत अनुकूल था। उपदेश समाप्त होने के बाद, गुरु ने कहा की यदि किसी शिष्य के मन में कोई सवाल है तो वो निःसंकोच पूछ सकता है।
वो दोनों गुरु के सामने गए और पहले लड़के ने पूछा की -
- मुझे अपने सही कर्मों का फल चाहिए। जिसे मैं देख और सुन सकूँ। उसके बाद तुरंत ही दूसरे लड़के ने सवाल पूछा -
- मेरी वाणी में मिठास नहीं है। कुछ भी कहता हूँ लोग बुरा मान जाते है इसे मैं कैसे सुधारूं।
- जीवन को कैसे समझा जा सकता है।
- आप जैसा ज्ञान और तेज कैसे पाया जा सकता है।
वो रात भर सोच रहे थे की उनका मन तो यहाँ से भागने का था। लेकिन गुरु के दिए कार्यो को करना उनकी
जिम्मेदारी बन गयी और वो अपने पूछे गए सवालों में खुद ही फंस गये। क्योंकि वो अब अपने सवालों का उत्तर जानना चाहते थें।
जिम्मेदारी बन गयी और वो अपने पूछे गए सवालों में खुद ही फंस गये। क्योंकि वो अब अपने सवालों का उत्तर जानना चाहते थें।
अगले दिन गुरु ने उन दोनों को बुलाया और पहले लड़के को कुम्हार के पास जाने को कहा और दूसरे को महागुरु के पास।
लड़के को लम्बी यात्रा पूरी करनी थी क्योकि एक महीने की यात्रा करने के बाद ही वो महागुरु के आश्रम तक पहुँच पता इसलिए गुरु ने उस लड़के को खर्च के लिए कुछ सोने के सिक्के दिये। जोकि यात्रा के अनुकूल नहीं थें।
लड़के ने कहा की यात्रा पूरी होने से पहले ही ये सिक्के ख़त्म हो जायेगे। गुरु ने कहा ये तुम्हारे दूसरे सवाल का अधूरा उत्तर है। तुम्हे जीवन को समझना होगा। जाओ अपनी यात्रा शुरू करो।
पहला लड़का कुम्हार से घड़ा बनाने का तरीका सीखने लगा। कुम्हार उससे मिट्टी लाने को कहता फिर उसे सानने के लिए कहता जिससे लड़का थक जाता था । उससे रोजाना कुम्हार यही काम करवाता और कुम्हार घड़ा खुद बनाता था । लड़के से कहता की तुम अभी इसे बनते हुए ही देखो।
घड़ा बन जाने के बाद लड़के को उसे कड़ी धुप में सुखाना पड़ता। वो रोजाना 20-30 घड़े सुखाता । फिर उन घड़ों को भट्टी में डालता था और उसे घड़ा खरा होने तक देख रेख करनी पड़ती।
एक दिन लड़के ने घड़ा बनाने के लिए कुम्हार पर जोर डाला। कुम्हार ने कहा की अब तुम मन से घड़ा बनाने के लिए तैयार हो चुके हो। कुम्हार ने उसे सनी मिट्टी चाक पर रखने को कहा और चाक घुमाने का तरीका बताया।
मिट्टी को नम करके उसे किस आकार में ढालना है कुम्हार ने ये भी सिखाया। ये सब बारीकी वो लड़का धीरे-धीरे सीख रहा था।
दूसरी तरफ दूसरा लड़का दस दिनों का सफर पूरा कर चूका था इन दस दिनों के बाद उसका धन थोड़ा ही बचा था। वो धन को कम खर्च करने के लिए उसने खान पान में कमी कर दी।
उसका शरीर गिरने लगा और मन शांत रहने लगा। वो अब इतना दुर्बल हो गया की किसी तरह की शरारत में उसका मन नहीं लगता, पर जीवन जीने का हौसला बढ़ गया।
उसको समझ आया की जीवन जीने के लिए मेहनत करना जरुरी है। वो खेतो में काम करने लगा। जिससे उसको भोजन मिलता।
खेत का मालिक उसको कभी कभी ताना देता था। लेकिन फिर भी वो मन लगाकर काम करता था। कुछ समय वहां बिताने के बाद अपना मेहनताना लेकर यात्रा के लिए आगे बढ़ा।
बुद्धिमान होने की वजह से उसने अपना आधा पैसा खिलौनो ,घर की आम चीजों को खरीदने में लगा दिया और उसे एक टोकरी में बेचने लगा। जिससे उसकी यात्रा और भोजन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
दिन बीतने पर, उसने बेचने के सामन में बढ़ोत्तरी कर दी। उसने एक ठेला खरीद लिया।
अब उसे सामान को लादने की जरुरत नहीं रही।
हाँ, लेकिन हर दिन यात्रा करने के कारण उसे रहने की जगह मिलती तो कभी नहीं मिलती। एक महीने पुरे होने के बाद वो महागुरु के आश्रम में पहुंच गया।
उसने महागुरु का आदर किया और उसने अपने गुरु की दी हुई चिट्ठी महागुरु को दी। महागुरु ने चिट्ठी मन में पढ़ी। उसमे लिखा था।
गुरु जी ये मेरा प्यारा शिष्य है जो की कई कठिनायों के बाद आप तक पंहुचा है। इसे आप रहने और खाने की कृपा कर के जगह दें और कुछ दिन बीतने के बाद मेरे पास भेज दें आपका -शिष्य।
महागुरु ने ऐसा ही किया। आश्रम के शिष्य उस लड़के के पास आये और उससे उसकी यात्रा कैसी रही पूछा। लड़के ने अपना एक महीने का अनुभव उन शिष्यों को बड़ी सरलता से दिया।
शिष्यों को एक अलग ज्ञान प्राप्त हुआ और उनमे से एक शिष्य ने लड़के से कहा आप की वाणी सत्य और मीठी है। यह सुन कर लड़के को आँसू आ गये। क्योकि लड़के का यह दूसरे सवाल का जवाब था। उसकी वाणी में मिठास आ गयी थी।
कुछ दिन बीतने के बाद वो वापसी की यात्रा को चल दिया।
तब तक पहला लड़का अच्छी तरह घड़ा बनाना तथा उसमे फुल पत्ती उकेरना सीख चूका था।
दो महीने पुरे होने को आये। पहला लड़का अच्छी तरह कुम्हार बन चूका था। तो दूसरा अपने काम में पूर्ण हो चूका था।
जैसा गुरु ने कहा था की दो महीने बीतने के बाद तुमको ज्ञान खुद ब खुद मिल जायेगा। आखिर वैसा ही हुआ।
लेकिन फिर भी वो गुरु की सच्ची वाणी सुनना चाहते थें। वो दोनों गुरु के पास आये और उनका आदर किया। दोनों ने गुरु को अपनी सारी बीती बातें बतायी और अपने सवालों का जवाब उनकी वाणी में देने को कहा
गुरु ने कहा तुम्हारा भाई दूर से यात्रा कर के आया है। अपने हाथ से बने घड़े का पानी उसे पिलाओ। पानी पीने के बाद दूसरे लड़के ने अपने भाई से कहा घड़े का पानी स्वच्छ और ठण्डा है। उसने अपने थैले से ख़रीदा हुआ गमछा उसको दिया। उसके भाई को अहसास हो रहा था की उसके कर्मो का फल अपने भाई के बोली और दिये हुए गमछे में मिल रहा है।
गुरु ने उन दोनों को उपदेश देना शुरू किया
जीवन घड़े के समान होता है। जिस तरह मनुष्य जीवन पता है वो गीली मिट्टी की तरह होता है। वो अबोध होता है।
उसका आकर निश्चित नहीं होता अर्थात उस अबोध मनुष्य का व्यवहार निश्चित नहीं होता उसका व्यवहार तब जन्म लेता है जब जीवन के रंगमंच पर उसे घुमाया जाता है बिलकुल चाक से घड़े की तरह।
समय और जीवन दोनों उसे सींचते हैं और उसे एक आकर देते है।
उसे कड़ी धुप में मेहनत करना पड़ता है। अपने व्यवहार और वादे को अटल बनाने के लिए।
फिर भी किसी धक्के से टूटने का डर रहता है अधिक दिन तक जीने के लिए उसे आंग में खरा होना पड़ता है। जिस तरह तुमने लोगो का ताना सुना फिर भी जीने के लिए उनके यहाँ नौकरी की।
अंत में गुरु ने कहा की ये तुम्हारे दो महीने का ज्ञान है जो की तुम्हारे व्यक्तित्व को निखार रहा है। अपना ज्ञान और तेज बढ़ाने के लिए तुम्हें इसी पथ पर रहना होगा।
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