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Showing posts from September, 2017
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आज मैं उन चीजों पर लिखने वाला हूँ। जो हमारे मन में होता है और  कभी कभी लोगो में भी दिखाई देता है। मुझे कभी कदार ऐसे व्यक्ति मिल ही जाते हैं। जिनके विचार ऐसे होते हैं की वो कहते हैं -       "उस आदमी में ये गुण बचपन से ही था "  अरे ये तो उसके खून में है।  डॉक्टर का लड़का है, डॉक्टर ही बनेगा। कम्पाउंडर थोड़े ही।  मेरे विचार भी कई साल तक ऐसे ही थें। फिर मैंने अपने विचारों को परखा की  क्या ऐसा वाकयी है? जवाब मिला की, ऐसा बिलकुल नहीं है।  बस उस व्यक्ति की सविधाएँ बढ़ जातीं है। अब उसके सम्भावनाओ पर निर्भर करता है की वो अपनी सुविधाओं को किस तरह उपयोग में लाता है।  ये बात मैं साफ़ कर देना चाहता हूँ की किसी इंसान को दी गयी सुविधाएँ, सही-गलत नहीं होती। उसे व्यक्ति किस काम में और किस तरह उपयोग में लाता है। ये चीज सही और गलत का फैसला करती हैं और उस व्यक्ति को क्या बना रही होती हैं।  एक छोटा लड़का जिसे ये पता नहीं की वो आगे क्या बनेगा उसके टीचर और परिवार वाले उसकी रूचि देख कर समझते हैं और उसके भविष्य का आंकलन करते हैं।  मान लेते हैं की इस वक्त उसे उसके परि

Our life thirst and water.

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एक साधारण आदमी था। उसकी ज़िन्दगी का एक छोटा सा पल बताता हूँ। एक दिन उसे प्यास लगी। आप कहेंगे की इसमें कौन सी बड़ी बात है।  सबको प्यास लगती है और लोग एक गिलास पानी पी लेते हैं। वो भी फ़िल्टर का शुद्ध और ठण्डा।  लेकिन ऐसा नहीं था. सन 1900 के समय में अगर वो आदमी कड़ी धूप में खेत पर काम कर रहा हो।  मई के मौसम में खेत की खर-पतवार भी सूख कर काँटेंदार हो जाती है। सिर्फ इस लिए की वो अधिक दिन जीवित रह सके और उस वक्त मनुष्य का हाल क्या होता था। ये कहानी आप लोगों को बताएगी। खेत में काम करने की वजह से उसके हाथों और पैरों  में मिट्टी लग गयी थी। वो थक भी गया था। खेत से कुछ ही दुरी पर कुंआ  था। वो उसके पास जाता है। कुंए के पास एक बाल्टी रखी हुई है। जो एक रस्सी से बंधी है। रस्सी का आखिरी छोर जो कुंए के पानी में नहीं डूब पाता वो छोर धूप पड़ने की वजह से सख्त और खुरदुरा हो गया है। उस आदमी ने बाल्टी को कुंए में लटकाया और धीरे-धीरे रस्सी को कुंए में ढिलने लगा। उसकी प्यास उस वक्त इतनी तेज हो चुकी थी की वो चिलचिलाती धूप के कारण बे-सुध होने लगा।  वो घुटनो के बल जमीन पर आ गिरा। उसने जो

Two Brothers Story

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एक बूढ़ी माँ के दो बिगड़ैल बेटे थें। वो बुद्धिमान थें। लेकिन गांव के लोगों को बड़ा परेशान करते थें। गांव के लोगों  ने लड़कों  की शिकायत उनकी माँ से की। माँ ने हर बार की तरह उन लोगों से माफ़ी मांगी और लड़कों  से गलती अब नहीं होगी ऐसा वादा किया। जो की हर बार की तरह टूट जाता था। बूढ़ी माँ इस बात से बहुत परेशान थी।  उसने अपने बेटों से कहा की मैं तुम्हारी हरकतों से तंग आ गयी हूँ। मेरी परवरिश ने ही तुम दोनों को बिगाड़ रखा है।  अगले दिन उसी गांव में एक गुरु का आना हुआ गांव के लोगों  ने उनका आदर सतकार किया। उनको रहने खाने की जगह दी।  अगले दिन एक वृक्ष के निचे गुरु जी अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थें।  गुरु ने देखा की एक पेड़ के निचे बूढ़ी औरत बैठी है और उनका ज्ञान सुन रही है। गुरु ने एक  शिष्य से कह कर उसको अपने पास बुलाया। गुरु को बूढ़ी औरत के चेहरे पर उसकी चिंता की लकीर दिख रही थी। उन्होंने पूछा की तुम्हारे दुःख का कारण क्या है। बूढ़ी औरत ने अपनी सारी व्यथा सुनाई और गुरु से अपने बेटों को शिष्य बनाने के लिए आग्रह किया, गुरु ने कहा की तुम अपने बेटों  के बगैर गुजरा कर सकती हो। 

my first feeling...( me and my friend)

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सुबह की सुरुवात एक बेहतर दिन बनाने की, अपनी और दूसरों की । अगर दूसरों का दिन बेहतर बनाने का मन कर लो तो। तो तुम्हारा दिन अपने आप बेहतर हो जायेगा।  मैं  class 5 में  था। उस वक़्त मैं छोटे पौधों का बहुत शौकीन था।  उनको बढ़ते देखना , उनमें छोटी -छोटी पत्तियां आना ,और नई शाखाओं, नन्ही डालियों को बेपरवाह बेतरतीब बढ़ते देखना मुझे अच्छा लगता था।                                                                          जड़ों से मिट्टी को पकड़े रहना जैसे हम सब जीने के लिए मेहनत करते हैं वो नन्हा पौधा भी ऐसी ही मेहनत कर रहा था।  कुछ दिन गुजरने के बाद उसमे एक छोटी, प्यारी-सी कली खिल गयी। जिसका मै बहुत दिन से इंतेज़ार कर रहा था।  और अंत में वो प्यारा खूबसूरत, खुश्बू  बिखेरता फूल। जिसे मैं कई मुद्दतों से सींचता आया। आज उसकी खुश्बू   पुरे घर में सबको लुभाने लगी। उसकी मासूम रंगत लोगों को आकर्षित करने लगी। मैंने उसकी पंखुड़िओ पर  पानी के छींटे मारें। मुझे ऐसा लगा की, मनो पानी की बूदें फ़ूल को सुरक्षित रखने के लिए ज़मीन पर गिरी जा रही थी।  जो बूदें पंखुड़ी पर ही थी, वो सिमट ग