Our life thirst and water.

एक साधारण आदमी था। उसकी ज़िन्दगी का एक छोटा सा पल बताता हूँ। एक दिन उसे प्यास लगी। आप
कहेंगे की इसमें कौन सी बड़ी बात है।

 सबको प्यास लगती है और लोग एक गिलास पानी पी लेते हैं। वो भी फ़िल्टर का शुद्ध और ठण्डा।
 लेकिन ऐसा नहीं था.
सन 1900 के समय में अगर वो आदमी कड़ी धूप में खेत पर काम कर रहा हो।

 मई के मौसम में खेत की खर-पतवार भी सूख कर काँटेंदार हो जाती है।
सिर्फ इस लिए की वो अधिक दिन जीवित रह सके और उस वक्त मनुष्य का हाल क्या होता था। ये कहानी आप लोगों को बताएगी।

खेत में काम करने की वजह से उसके हाथों और पैरों  में मिट्टी लग गयी थी। वो थक भी गया था।


खेत से कुछ ही दुरी पर कुंआ  था। वो उसके पास जाता है। कुंए के पास एक बाल्टी रखी हुई है।
जो एक रस्सी से बंधी है।

रस्सी का आखिरी छोर जो कुंए के पानी में नहीं डूब पाता वो छोर धूप पड़ने की वजह से सख्त और खुरदुरा हो गया है।

उस आदमी ने बाल्टी को कुंए में लटकाया और धीरे-धीरे रस्सी को कुंए में ढिलने लगा। उसकी प्यास उस वक्त इतनी तेज हो चुकी थी की वो चिलचिलाती धूप के कारण बे-सुध होने लगा।

 वो घुटनो के बल जमीन पर आ गिरा। उसने जो रस्सी पकड़ी थी वो ढीली हो गयी जिससे रस्सी बाल्टी के सहारे तेजी से कुंए में जाने लगी। रस्सी खुरदुरी होने की वजह से आदमी के हाथ छील गए।

उसके हाथों से रस्सी छूट गयी। बाल्टी कुंए के पानी में जा गिरी शुक्र था की रस्सी के आखिरी छोर पर गांठ लगी थी जो की कुंए के पुली में फंस गयी पुली वो होती है जिससे रस्सी ढीली जाती है।

उसके हाथ छील जाने से खून निकलने लगा। लेकिन प्यास की वजह से उसे  दर्द का एहसास नहीं हो रहा था। आदमी की सांसे खींचने लगी और हलक सूखने की वजह से खाँसी आने लगी उसकी आँखें बंद होने लगी।

थोड़ी देर बाद लू चलने लगी जिससे एक पेड़ का सूखा पत्ता डाल से टूट कर उसके मुँह पर आया। अचानक उसकी आँखे खुली।

उसने अपने ज़बान से सूखे होठों को गिला किया फिर वो धीरे धीरे उठा और सर से  गमछा उतारा, अपने हाथ पर उसे बाँधा जहाँ से खून निकल रहा था।

 कुंए की फंसी रस्सी को उसने थाम लिया। जो बाल्टी पानी में गोते लगा रही थी। अचानक रस्सी खींच जाने पर वो थम सी गयी आदमी धीरे धीरे रस्सी खींचने लगा बाल्टी ठण्डे मीठे पानी से भरी हुई थी।

 एक पल आया की उसके होंठ प्यासे सामने पानी और हाथों में जख्म थें।

 उस वक्त उसे ऐसा लग रहा था। की उसे जख्म हुए ही नहीं। वो तो बस प्यासा सिर्फ प्यासा महसूस कर रहा था। बाल्टी कुंए की दिवार पर टकराने लगी उसने अपना हाथ बढ़ाया और बाल्टी को खींच लिया।

अब उसने बाल्टी को अपने सामने रखा। खुद को पूरी तरह होश में लाने के लिए अपना चेहरा पानी से धोया। उसने अपने हाथ और पाँव भी धोंये जो मिट्टी लगने से गंदे हो गए थें।

फिर उसने हाथों का चुल्लू बनाया और पानी को मुँह से लगाया। पानी पिने के बाद उसने ऊपर वाले का शुक्र अदा किया और कहा "वो पाक मालिक है पुरे जहान का, जिसने पानी को ज़मीन पर उतारा जो मेरे दिल को तर कर रहा है।"

आज 2017 है। हम घर पर आते हैं। प्यास लगती है। फ्रिज में फ़िल्टर किया पानी होता है। उस बोतल को हम निकालते हैं। ढक्कन खोलते हैं। और गट-गट पानी पी जाते हैं और इस बेहतरीन नियामत का उपर वाले को शुक्र भी अदा नहीं करते।

इस दौर में हमारे रास्ते आसान होने पर शायद उपर वाले को शुक्र भेजना भूल गयें हैं।

माँ के कहने पर की 'बेटा बोतल में पानी भर कर रख दो जरा। '  ये सुन कर हम सब नकारने वाला जवाब देतें हैं। हाँ। ....... भर देंगे 10 मिनट बाद।

आखिर में माँ को ही पानी भरते हुए हम देखते हैं। शायद माँ ने जो पिछली ज़िन्दगी जी है वो कुंए वाली ही थी। वो मन में शुक्र कर लेती होगी और सोचती होगी, जहाँ कुंए से पानी भरना पड़ता था।
अब उसे नल से पानी भरना पड़ता है। जो की उसके लिए आसान है इसीलिए वो तुमसे आगे कुछ नहीं कहती।









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