my first feeling...( me and my friend)

सुबह की सुरुवात एक बेहतर दिन बनाने की, अपनी और दूसरों की । अगर दूसरों का दिन बेहतर बनाने का मन कर लो तो।
तो तुम्हारा दिन अपने आप बेहतर हो जायेगा। 

मैं  class 5 में  था। उस वक़्त मैं छोटे पौधों का बहुत शौकीन था।  उनको बढ़ते देखना , उनमें छोटी -छोटी
पत्तियां आना ,और नई शाखाओं, नन्ही डालियों को बेपरवाह बेतरतीब बढ़ते देखना मुझे अच्छा लगता था।
                                                                      
  जड़ों से मिट्टी को पकड़े रहना जैसे हम सब जीने के लिए मेहनत करते हैं वो नन्हा पौधा भी ऐसी ही मेहनत कर रहा था। 
कुछ दिन गुजरने के बाद उसमे एक छोटी, प्यारी-सी कली खिल गयी। जिसका मै बहुत दिन से इंतेज़ार कर रहा था। 
और अंत में वो प्यारा खूबसूरत, खुश्बू  बिखेरता फूल। जिसे मैं कई मुद्दतों से सींचता आया। आज उसकी खुश्बू 

 पुरे घर में सबको लुभाने लगी। उसकी मासूम रंगत लोगों को आकर्षित करने लगी। मैंने उसकी पंखुड़िओ पर 

पानी के छींटे मारें। मुझे ऐसा लगा की, मनो पानी की बूदें फ़ूल को सुरक्षित रखने के लिए ज़मीन पर गिरी जा रही थी। 
जो बूदें पंखुड़ी पर ही थी, वो सिमट गयी, सायद इस वजह से की फ़ूल को कोई नुकसान न हो। 

गमले की मिट्टी सख्त थी। मैंने खुरपी से उसे मुलायम किया, कड़े टुकड़े को छोटा किया, जो ज्यादा सख्त थे,उसे 

गमले से निकाल दिया। क्योकि वो जड़ों को नुकसान पहुँचा सकते थे। मैंने गमले में स्प्रे से पानी के छींटे मारे मिट्टी नम हो गयी। 
पत्तीओं पर  से मिट्टी की धूल भी  साफ़ की। उस वक्त मैंने क़िताब में पढ़ा था। की पत्तियाँ पौधों का श्वसन अंग हैं। 
कई हफ्तों तक फ़ूल की मोहकता मुझे खींच लाती थी। उसकी देखभाल का अहसास कराती थी। 
एक दिन। .... 
वो फ़ूल का आख़िरी दिन। 

उसकी पंखुड़ियां सूखने लगीं और गमले की मिट्टी पर गिर रहीं थीं। मैंने उनको बड़ी हिफ़ाजत से अपने         स्कूल बॉक्स के अन्दर रख दिया। 

मैं कई दिनों तक उदास था। पौधे की सुनी डालियों को हर रोज़ मैं एक उम्मीद भरी निगाहों से देखता। 
की आज उस पर नन्ही कली खिली होगी।  

मैंने पौधे की देखरेख में कमी कर दी। उससे आश छूटने लगी। 

उस वक्त जून का महीना बीत रहा था।
  मुझे कभी-कभी लगता की वो नन्हा पौधा मुझे बुला रहा है।  मैंने जाकर देखा की गमले    की मिट्टी सुख चुकी थी। 

पौधे की छोटी डालियाँ झुक रही थी। मनो की वो मुझसे आख़िरी अलविदा ले रहा हो। मेरे आंसू निकलने लगे 

और उसकी मिट्टी पर गिर रहे थे। मिट्टी नम हो गयी, और मुझे अहसास हुआ की ज़िन्दगी कभी थमती नहीं। 

मुझे अपनी गलती का भी अहसास हुआ और मैंने फिर से उसे दोबारा पहले जैसा करने की ठान ली। सायद कुदरत भी साथ देने लगी। 

कुछ ही दिनों में सुहावनी बरसात होने लगी। मैंने दिन पर दिन उसकी पत्तियों को हरा होते देखा। उसकी छोटी डालियाँ पहले से बेहतर थीं। 

सुबह से बरसात हो रही थी। मैंने गमले को ऐसी जगह रखा की जहाँ पर पानी की हल्की फुहार आ रही थी। और मैं पौधे के साथ दिन भर बैठा रहा, बारिस हम दोनों ही देख रहे थें। 

हवा के झोके आने लगें, जो पौधे को हिला रहे थे। और पौधा मेरी कुहनी पर टकरा रहा था।
शायद वो कह रहा था की
"सब कुछ भुलाकर पहले जैसे दोस्त बन जाते हैं। क्या हैण्डशेक करोगे।"

मैंने उसकी पत्तिओं को छुआ ये मेरा खूबसूरत लम्हा था। 

आसमान में बिजलियाँ तेजी  से चमक रही थीं। उनकी गरज बहुत तेज थी। पर मुझे धड़कन किसी और की सुनाई दे रही थी। 

मैंने किताब में पढ़ा था की पौधों में भी जीवन होता है, पर अहसास इस वक्त हो रहा था। 





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